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बवासीर, जिसे पाइल्स भी कहते हैं, एक सामान्य लेकिन बहुत असहज और दर्दनाक बीमारी है। यह समस्या अधिकांशतः खराब खान-पान, अस्वस्थ जीवनशैली और लंबे समय तक कब्ज बने रहने के कारण होती है। बवासीर में गुदा (anus) और मलाशय (rectum) के अंदर या बाहर की नसों में सूजन आ जाती है, जिससे मल त्याग करते समय दर्द, जलन और खून निकलने जैसी दिक्कतें होने लगती हैं। कभी-कभी यह सूजन इतनी बढ़ जाती है कि बैठना और सामान्य दिनचर्या निभाना भी मुश्किल हो जाता है।बवासीर को दो भागों में विभाजित किया जाता है: आंतरिक और बाहरी। आंतरिक बवासीर गुदा के अंदर होती है और यह सामान्यत: दर्दरहित होती है, लेकिन इसमें खून आ सकता है। दूसरी ओर, बाहरी बवासीर गुदा के बाहर होती है, जिसमें दर्द, सूजन और जलन अधिक होती है। इसके प्रमुख कारणों में बार-बार कब्ज होना, जोर लगाकर मल त्याग करना, तले-भुने और मसालेदार भोजन का अत्यधिक सेवन, पानी कम पीना, और एक ही जगह लंबे समय तक बैठे रहना शामिल हैं। महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान हार्मोनल बदलाव और पेट पर बढ़ा हुआ दबाव भी बवासीर का कारण बन सकता है।बवासीर के लक्षणों में गुदा के आस उनकी सूजन या फिर गांठ बनना, जलन, खुजली, भारीपन महसूस होना, और मल त्यागते समय खून आना है। अगर समय पर इसका इलाज न किया जाए तो यह हालत और गहराई सेचुक जाएगी।आयुर्वेद में बवासीर के लिए बहुत से सकारात्मक और सुरक्षित उपचार उपलब्ध हैं। त्रिफला चूर्ण कब्ज को दूर करने से मल त्याग आसान होता है और नसों पर दबाव नहीं पड़ता। चंद्रप्रभा वटी और अर्श कुठार रस का उपयोग सूजन और खून को कम करने के लिए करता है। नागकेशर खून रोकने के लिए कारगर होता है। इसके अलावा, कुछ घरेलू उपाय भी राहत प्रदान करते हैं। जैसे – गुनगुने पानी में बैठना (Sitz Bath), जो सूजन और जलन को कम करता है; एलोवेरा जेल का इस्तेमाल, जो ठंडक देता है और खुजली से राहत देता है; नारियल तेल या अरंडी के तेल की मालिश, जिससे दर्द और सूजन कम होती है। इसके साथ ही, खाने में फाइबर युक्त चीज़ें जैसे हरी सब्ज़ियाँ, फल, साबुत अनाज और दलिया को शामिल करना और दिनभर में पर्याप्त पानी पीना बेहद ज़रूरी है।बवासीर से बचाव के लिए जीवनशैली में बदलाव भी आवश्यक हैं। जैसे कि नियमित समय पर शौच जाना, लंबे समय तक टॉयलेट में बैठना टालना, शारीरिक गतिविधि बनाए रखना, योग-व्यायाम करना और मसालेदार व जंक फूड से बचना। अगर लक्षण लंबे समय तक बने रहें, अत्यधिक खून आए या दर्द असहनीय हो जाए, तो डॉक्टर से तुरंत संपर्क करना चाहिए। कभी-कभी गंभीर स्थिति में सर्जरी की भी आवश्यकता पड़ सकती है, इसलिए इसे हल्के में न लें और समय रहते इलाज करवाएं।
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अंजीर में पेट से जुड़ी समस्याओं को ठीक करने के गुण मौजूद होते हैं। इसका सेवन करने से पाइल्स से हो रही जलन, दर्द और खुजली को काफी हद तक कम किया जा सकता है। अंजीर खाने से पाचन तंत्र के साथ-साथ पेट में गैस बनना, समय पर शौंच न आना, खाना हजम न होने जैसी समस्याएं दूर हो सकती है। अंजीर को बवासीर की दवा माना जा सकता है।
बवासीर की समस्या में हरसिंगार भी बहुत फायदेमंद माना जाता है, क्योंकि इसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटी-बैक्टीरियल गुण मौजूद होते हैं। इसका सेवन करने से सूजन और दर्द को कम करने में मदद मिल सकती है। हरसिंगार के बीज का चूर्ण गुनगुने पानी के साथ लें। इससे आपको बवासीर की बीमारी में बहुत आराम मिल सकता है।
नीम की पत्तों में एनाल्जेसिक और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण मौजूद होते हैं। इसका सेवन करने से सूजन और परेशानी को कम किया जा सकता है। नीम के पत्तों को पानी में उबालें और उसके घोल को पी लें। नीम के रस को खूनी बवासीर की गारंटी की दवा माना जाता है।
हल्दी में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण मौजूद होते हैं। हल्दी का सेवन करने से सूजन और दर्द को काफी हद तक कम किया जा सकता है। इसका इस्तेमाल करने के लिए आप एक चम्मच घी में थोड़ी-सी हल्दी मिलाकर प्रभावित हिस्से पर लगा लें। इससे बवासीर के कारण हो रहे दर्द और जलन में राहत मिल सकती है।
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एलोवेरा में भी कई तरह के औषधीय गुण मौजूद होते हैं। एलोवेरा की ताजी पत्तियों के जेल को प्रभावित हिस्से पर लगाएं। एलोवेरा के जूस का सेवन करने से बवासीर की समस्या में आराम मिल सकता है। एलोवेरा को बवासीर के मस्से सुखाने की दवा माना जाता है।
बेल के पत्ते भी बवासीर की दवा माने जाते हैं। बेल के पत्तों में एंटी-इंफ्लेमेटरी और एनाल्जेसिक गुण मौजूद होते हैं। इनका सेवन करने से बवासीर के कारण आ रही सूजन की परेशानी को कम करने में मदद मिल सकती है। बेल के पत्तों का काढ़ा बनाकर पीने से बहुत लाभ हो सकता है।
त्रिफला को भी बवासीर की दवा में से एक माना जाता है। त्रिफला को पिप्पली, हरीतकी, विभूतकी और आंवले जैसी जड़ी-बूटियों को मिलाकर बनाया जाता है। इसका सेवन करने से बवासीर के कारण गुदा में हो रहे दर्द और सूजन को खत्म किया जा सकता है। इससे इंफेक्शन की संभावना भी कम हो सकती है।
हरीतकी में औषधीय गुण मौजूद होते हैं। इसे सबसे गुणकारी औषधि माना जाता है। हरीतकी का सेवन करने से पाचन से जुड़ी बीमारियों को ठीक करने में मदद मिलती है। बवासीर के साथ-साथ शरीर की कमजोरी दूर करने, डायरिया को ठीक करने, गैस और कब्ज से राहत में भी हरीतकी का इस्तेमाल किया जा सकता है।
तुलसी के पत्तों में एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण मौजूद होते हैं। इनका सेवन करने से पाचन और कब्ज में राहत मिलती है। तुलसी के पत्तों का सेवन करने से दर्द और सूजन को कम करने में मदद मिल सकती है। इसके पत्तों का रस निकालकर उनमें शहद मिलाकर उसका सेवन करने से बवासीर की समस्या में आराम मिल सकता है। तुलसी के पत्तों को आप खूनी बवासीर की गारंटी की दवा कह सकते हैं।
तो जैसा कि आपने जाना बवासीर की गारंटी की दवा क्या है। ऐसे में इस दवा का सेवन करने से पहले आप एक बार अपने डॉक्टर से सलाह जरूर कर लें।
अगर आपको भी बवासीर की समस्या हो रही है, तो आप अपना इलाज आयु कर्मा में आकर करवा सकते हैं। आयु कर्मा डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट के बिना पूर्णतः प्राचीन भारतीय आयुर्वेद के सहारे से किडनी फेल्योर का इलाज कर रहा है। यहां न सिर्फ किडनी से जुड़ी बीमारियों का इलाज किया जाता है, बल्कि कई अन्य बीमारी जैसे कि कैंसर, ल्यूकोडर्मा, सोरायसिस, क्रिएटिनिन, प्रोटीन्यूरिया आदि बीमारियों का इलाज भी किया जाता है।
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