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कान की नसों का आयुर्वेदिक इलाज

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कान की नसों का आयुर्वेदिक इलाज

कान हमारे शरीर का एक अत्यंत महत्वपूर्ण अंग है, ये न ही सिर्फ सुनने की क्षमता देता है, बल्कि संतुलन बनाए रखने में भी मदद करता है। कान की नसों के कमज़ोर होने के केवल एक नहीं बहुत से कारण होते हैं जिसके विषय में हम आगे इस आर्टिकल में बात करेंगे, आजकल कई लोग कान की नसों से जुड़ी समस्याओं से जूझ रहे हैं और उस स्तिथि में बहुत से लोग आधुनिक दवाइयों का प्रयोग करते हैं, पर आज इस आर्टिकल में हम आपको कान की नसों का आयुर्वेदिक इलाज बताएंगे जिससे आप कुछ सरल आयुर्वेदिक उपायों से अपनी समस्याओं को जड़ से ठीक कर सकते हैं वो भी बिना किसी साइड इफेक्ट के।

कान की नसों में समस्या के लक्षण 

  • सुनने में कमी - धीरे-धीरे आवाज़ें मंद सुनाई देना या बातचीत समझने में कठिनाई होना।

  • कान में दर्द - नसों में तनाव या सूजन के कारण कान में लगातार या रुक-रुक कर दर्द महसूस होना।

  • कानाफूसी या सीटी जैसी आवाज आना - बिना बाहरी स्रोत के कान में झंकार या सीटी जैसी आवाजें सुनाई देना।

  • मानसिक थकावट और चिड़चिड़ापन - लगातार सुनने की परेशानी से मानसिक तनाव और चिड़चिड़ापन बढ़ जाना।

  • कान से तरल पदार्थ का रिसाव - संक्रमण या आंतरिक सूजन के कारण कान से मवाद या पानी जैसा द्रव निकलना।

  • चक्कर आना या संतुलन में परेशानी - श्रवण तंत्रिकाओं के प्रभावित होने से शरीर का संतुलन बिगड़ना या बार-बार चक्कर आना।

कान की नसों में समस्या के कारण 

  • बढ़ती उम्र - उम्र के साथ श्रवण तंत्रिकाएं कमजोर हो जाती हैं जिससे सुनने की क्षमता प्रभावित होती है।

  • तेज़ आवाज़ के संपर्क में आना - लंबे समय तक ऊँची आवाज़ों के संपर्क में रहने से कान की नसों को नुकसान होता है।

  • सिर या कान की चोट -  सिर या कान पर लगी चोट श्रवण नसों को क्षति पहुंचा सकती है।

  • तनाव और मानसिक थकावट - मानसिक तनाव और लगातार थकावट तंत्रिकाओं को कमजोर कर देती है।

  • जीवनशैली की गलत आदतें - असंतुलित दिनचर्या, नींद की कमी और अत्यधिक मोबाइल उपयोग कान की नसों को प्रभावित करते हैं।

  • वात दोष की वृद्धि - आयुर्वेद के अनुसार, वात दोष बढ़ने से नसों में सूखापन, खिंचाव और दुर्बलता उत्पन्न होती है।

 

कान की नसों का आयुर्वेदिक इलाज

  1. अश्वगंधा - अश्वगंधा आयुर्वेद की एक प्रमुख औषधि है, ये विशेष रूप से नसों की समस्या में लाभ पहुँचाती है, अश्वगंधा में मौजूद प्राकृतिक रसायन जैसे विथानोलाइड्स और ऐंटीऑक्सिडेंट्स नसों की सूजन को कम करते हैं, जिससे श्रवण तंत्रिकाएं धीरे-धीरे ठीक होने लगती हैं। यह शरीर में रक्त संचार को सुधारती है जिससे कान की नसों तक उचित मात्रा में ऑक्सीजन और पोषक तत्व पहुंचते हैं। साथ ही, अश्वगंधा मानसिक तनाव और चिंता को कम करने में भी मदद करती है, जो कि कान की नसों को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारणों में से एक हैं। इसलिए अश्वगंधा को हम कानों की नसों को ठीक करने की दवा भी कह सकते हैं।
    अश्वगंधा

 

  1. ब्रह्मी - ब्रह्मी एक शक्तिशाली औषधि है जो विशेष रूप से मस्तिष्क, तंत्रिकाओं और मानसिक स्वास्थ्य के लिए जानी जाती है। इसका एक अनूठा गुण यह है कि यह मानसिक तनाव, चिंता और अनिद्रा को दूर करती है, जो कि कान की नसों के विकारों को और अधिक बढ़ा सकते हैं। मानसिक तनाव नसों को थका देता है और उनकी कार्यक्षमता घटाता है, जबकि ब्रह्मी मन को शांत करके तंत्रिकाओं को राहत देती है और उन्हें पुनर्जीवित करती है। इससे कान की नसों में रक्त संचार सुधरता है और उनका पोषण बेहतर होता है।

  2. शंखपुष्पी - शंखपुष्पी एक प्रसिद्ध आयुर्वेदिक औषधि है, यह विशेष रूप से मानसिक शांति, स्मृति शक्ति, और तंत्रिकाओं की मजबूती के लिए जानी जाती है। और जब बात कान की नसों की होती है, तो शंखपुष्पी का उपयोग अत्यंत प्रभावी माना जाता है, क्योंकि यह नसों को भीतर से पोषण देती है और उन्हें सशक्त बनाती है। इसके साथ ही शंखपुष्पी स्मरण शक्ति और एकाग्रता बढ़ाने के लिए जानी जाती है, जिससे मस्तिष्क और श्रवण तंत्रिकाओं के बीच का तालमेल बेहतर होता है। यह रक्त संचार को भी सुधारती है, जिससे कान की नसों तक पर्याप्त पोषण और ऑक्सीजन पहुंचता है।

    हल्दी

  3. हल्दी - हल्दी भारतीय आयुर्वेद में एक अत्यंत शक्तिशाली औषधि के रूप में जानी जाती है साथ ही इसे हर घर के खाने में प्रयोग भी किया जाता है, अगर कान की समस्या किसी संक्रमण या एलर्जी के कारण है, तो हल्दी की जीवाणुनाशक और रोगप्रतिरोधक क्षमता संक्रमण को भी रोकती है और शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाती है। इसके अलावा, हल्दी तनाव को कम करने में भी सहायक है, जिससे मानसिक शांति मिलती है और तंत्रिका तंत्र पर पड़ने वाला अतिरिक्त दबाव कम होता है। इसलिए हम हल्दी को कान में झनझनाहट का देसी इलाज मान सकते हैं।
    गुग्गुलु

 

  1. गुग्गुलु - गुग्गुलु आयुर्वेद की एक अत्यंत प्रभावशाली औषधि है, यह रक्त संचार को बेहतर बनाता है और शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकालने का कार्य करता है। यह गुण कान की नसों तक पोषक तत्वों और ऑक्सीजन के संचार को सुचारु बनाता है, जिससे उनकी कार्यक्षमता में सुधार होता है। विशेष रूप से यदि कान की समस्या बढ़ती उम्र, जोड़ों के विकार या तंत्रिका क्षीणता से जुड़ी हो, तो गुग्गुलु अत्यंत लाभकारी सिद्ध होता है। इसलिए ये कान की नसों में दर्द का आयुर्वेदिक इलाज बन सकता है।

 

आज के इस आर्टिकल में हमने कान की नसों का आयुर्वेदिक इलाज, के बारे में, बात करी और आपने जाना की कैसे कुछ घरेलू और आयुर्वेदिक उपचार इस समस्या में आपके काम आ सकते हैं, लेकिन आप सिर्फ इन सुझावों पर निर्भर ना रहें समस्या अगर ज्यादा गंभीर है तो डॉक्टर से संपर्क ज़रूर करें या कर्मा आयुर्वेद अस्पताल में भारत के बेस्ट आयुर्वेदिक डॉक्टर से सलाह ले सकते हैं। हेल्थ से जुड़े ऐसे और भी ब्लॉग्स और आर्टिकल्स के लिए जुड़े रहें अयुकर्मा के साथ



 

 

कान का सबसे अच्छा आयुर्वेदिक इलाज कौन सा है? 

कान का सबसे अच्छा आयुर्वेदिक इलाज नस्य कर्म, ब्रह्मी तेल से सिर की मालिश और अश्वगंधा, शंखपुष्पी, व योगराज गुग्गुलु जैसी जड़ी-बूटियों का सेवन है, जो वात दोष को शांत कर नसों को मजबूत करते हैं।

नसों के लिए कौन सी आयुर्वेदिक दवा सबसे अच्छी है? 

नसों के लिए सबसे अच्छी आयुर्वेदिक दवा अश्वगंधा, ब्रह्मी, और योगराज गुग्गुलु मानी जाती है, जो तंत्रिकाओं को मजबूत और सक्रिय बनाती हैं।

कान की बंद नस को कैसे खोलें? 

कान की बंद नस को खोलने के लिए नस्य कर्म, ब्रह्मी या अनुतैल से नाक में तेल डालना, और अश्वगंधा, शंखपुष्पी जैसी वातशामक औषधियों का सेवन प्रभावी होता है; साथ ही गुनगुने तेल से सिर की मालिश भी लाभकारी है।

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