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भगंदर (Bhagandar) एक गंभीर चिकित्सा स्थिति है, जिसे फिस्टुला (Fistula) भी कहा जाता है। आमतौर पर भगंदर में गुदा यानी एनस (Anus) के आस-पास फोड़े और फुंसियां बन जाती हैं। इससे गुदा में घाव और जख्म हो सकते हैं, जो दर्द, खुजली और जलन जैसी समस्याओं का कारण बनते हैं। इसके अलावा अनुपचारित छोड़ दिए जाने या देर से उपचार करने पर भगंदर से कई गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। हालांकि, कुछ उपचार विकल्प इसके इलाज और लक्षणों को कम करने में फायदेमंद हो सकते हैं। इस ब्लॉग में आप जानेंगे कि भगंदर आयुर्वेदिक उपचार से कैसे ठीक किया जा सकता है?
भगंदर के लक्षण
भगंदर के लक्षण हल्के से लेकर गंभीर होते हैं और कई स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकते हैं। लेकिन, कुछ लक्षणों से आपको भगंदर के निदान में मदद मिल सकती है, जैसे:
भगंदर के कारण
कई जोखिम कारकों को भगंदर के विकास का प्रमुख कारण माना जाता है। ऐसे ही कुछ सामान्य कारणों में नीचे दिए गए विकल्प शामिल हो सकते हैं:
भगंदर के प्रकार
भगंदर को मुख्य रूप से दो प्रकारों में विभाजित किया गया है, जैसे:
कई जड़ी-बूटियों और आयुर्वेदिक औषधियों से भगंदर का प्राकृतिक इलाज किया जा सकता है। इसके कुछ अन्य उपचार विकल्प निम्नलिखित हैं:
हल्दी - हल्दी यानी हरिद्रा, भगंदर के लिए सबसे अच्छा आयुर्वेदिक उपचार हो सकती है। इसमें कई पोषक तत्व शामिल होते हैं जैसे, एंटीऑक्सीडेंट्स, एंटीबैक्टीरियल और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण। इनसे सूजन को नियंत्रित और जलन को शांत करने में मदद मिलती है। साथ ही यह घाव को जल्दी ठीक करते हैं और शरीर को इंफेक्शन से लड़ने की क्षमता प्रदान करते हैं।
ब्राह्मी - ब्राह्मी एक प्रभावी जड़ी-बूटी है, जिसे भगंदर के इलाज में उपयोगी औषधि माना जाता है। इसमें टैनिन, सैपोनिन, आयरन, कैल्शियम और फ्लेवोनॉयड्स होते हैं, जो तनाव को कम करते हैं। साथ ही इनसे सूजन, जलन को नियंत्रित करने, इम्यून सिस्टम को बढ़ावा देने और त्वचा की समस्याओं से भी राहत मिल सकती है।
त्रिफला- आंवला, हरड़ और बहेड़ा से मिलकर बनी त्रिफला भगंदर के इलाज में फायदेमंद हो सकती है। यह आयुर्वेदिक औषधि फाइबर, पॉलिफेनोल्स, विटामिन-C, एंटीऑक्सीडेंट्स और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुणों का बेहतरीन स्रोत है, जिससे शरीर डिटॉक्स होता है। साथ ही यह पाचन क्रिया में सुधार और सूजन को कम करके आपकी इम्यूनिटी को भी बढ़ावा देते हैं।
तिल का तेल- तिल का तेल, भगंदर के उपचार का अन्य प्रभावी और प्राकृतिक विकल्प है। इसमें विटामिन-E, जिंक, ओमेगा-3 और ओमेगा-6 फैटी एसिड्स के साथ कई एंटीऑक्सीडेंट्स मौजूद होते हैं। यह त्वचा की जलन को शांत और सूजन को नियंत्रित करते हैं। साथ ही तिल के तेल का सेवन सूजन और घाव में भी राहत प्रदान कर सकता है।
नीम के पत्ते - नीम के पत्ते, भगंदर के इलाज में अन्य लाभकारी विकल्प हो सकते हैं। इनमें कैल्शियम, टैनिन, आयरन, विटामिन-C, फ्लेवोनॉयड्स और एंटीऑक्सीसीडेंट्स की उच्च मात्रा होती है। इन सभी पोषक तत्वों से शरीर को रोगों से लड़ने की ताकत मिलती है। साथ ही नीम के पत्तों का नियमित सेवन घाव को जल्द ठीक करने में मदद करता है।
तुलसी के पत्ते - तुलसी के पत्ते आयरन, कैल्शियम, विटामिन-C, फ्लेवोनॉयड्स और एंटीऑक्सीडेंट्स में उच्च होते हैं। यह पोषक तत्व इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाकर शरीर को इंफेक्शन से लड़ने की ताकत देते हैं। साथ ही यह खून को साफ करते हैं, जिससे भगंदर को प्राकृतिक रूप से ठीक या लक्षणों को नियंत्रित किया जा सकता है।
अश्वगंधा- अश्वगंधा का सेवन भी भगंदर के उपचार में कई फायदे प्रदान कर सकता है। इसमें सैपोनिन, आयरन, विटामिन-C, विटामिन-E, एंटीऑक्सीडेंट्स और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण पाए जाते हैं। इनसे शरीर को ऊर्जा मिलती है, मानसिक तनाव कम होता है और रक्त संचार बेहतर होता है। साथ ही अश्वगंधा के सेवन से सूजन और दर्द की समस्या में भी सुधार हो सकता है।
अगर आप भी जानना चाहते हैं कि भगंदर आयुर्वेदिक उपचार से कैसे ठीक किया जाए, तो यह ब्लॉग पोस्ट आपके लिए बहुत फायदेमंद हो सकता है। हालांकि, आप केवल इन उपायों पर निर्भर न रहें और कोई भी उपचार विकल्प चुनने से पहले डॉक्टर से परामर्श जरूर लें। सेहत से जुड़े ऐसे ब्लॉग्स और आर्टिकल्स के लिए जुड़े रहें आयु कर्मा के साथ।
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